दो पल की मेहमाँ है खुशी
दुःखके घर में खुशी, दो पल की मेहमाँ बनकर आई
सब ने लुत्फ़ उठाया, खेले खाए और मज़ा लिया
जब उससे बिछड़ने की ऋतु आई तो फूट-फूट कर रोये सब
दो पल की खुशियाँ देकर चली गई खुशी
फिर आने का वायदा कर मुस्कुराते हुए आगे बढ़ गयी
अब फिर से छा गई उदासी दुःख के घर में ,
बार-बार याद कर उसके आने का इंतज़ार करते हैं सब
इसी इंतज़ार में लम्हा-लम्हा दिन गुजरते हैं सब
कब वो आए,हमारे होठों पर खुशी के फूल खिलाये
ये तो प्रकृति का रिवाज़ है,
ये मेहमाँ तो बस दो पल का आगाज़ है
जिसे आना है और चले जाना है
थोड़े समय के लिए खुशी के फूल खिलाना है
रोते हुए को हँसाना है और फिर धुंधलके में लौट जाना है
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