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अतीत

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अतीत की सोच में हम इस कदर घिरे हैं जहाँ आज के रिश्ते सिर्फ ओ सिर्फ बेमानी से लगते हैं कौन जाने कि वो हँसता- मुस्कुराता अतीत हमें फिर कब नसीब होगा इसी ख्वाब के लिए हम अपने अतीत में पल -पल जीते - मरते हैं अब चाह रहे फिर से ख़ुशहाली के वो पल आयें जहाँ आप और हम थे मुस्कुराए पर क्या कहें इस ज़माने कि जिसने हमारी इस मुस्कराहट को भी जिम्मेदारियों के बोझ तले बूढ़ा कर दिया फिर भी उम्मीदों के इस भंवर में जाग रही है जीने की एक नयी राह ...