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मैं और मेरी खूबसूरती

ये उदासी, ये अंधेरा, ये कैद भरी जिंदगी लेकर कहां जाऊं। मनसा यही जहां जाऊं इसे छोड़ आऊं।। आज कुछ सोचते-सोचते कितनी उदास हो गई मैं, ये कैद भरी जिंदगी कब अपनी आखिरी सांस लेगी, इसी इं तजार में मेरी खूबसूरती दिन-ब-दिन ढलती जा रही है। ऐसा नहीं है कि मेरी खूबसूरती कम हो रही है बल्कि यचह कहा जाए कि मैं अपनी सुंदरता में दिन-प्रतिदिन कुछ ऐसा सौंदर्य बढ़ा रही हूं जो मेरे जीवन के लिए बहुत सुकून भरा होगा लेकिन किसी को इसी सुदरता की फिक्र नहीं। समाज सिर्फ शोहरत और दौलत की अंधी दौड़ में शामिल हो भागता जा रहा है... भागता जा रहा है और मेरा अस्तित्व खत्म करता जा रहा है। आश्चर्य मत कीजिए! इतनी देर से आप सभी जिन्हें जोड़कर समाज बनता है यही सोच रहे होंगे कि आखिर कौन है जो अपनी सुंदरता का इस कदर बयान कर रहा है, जो सबसे अधिक खूबसूरत है पर अंधरों में कैद है, हां मैं कोई और नहीं, बल्कि उस आम इंसान की मेहनता हूं जो एक कोरे कागज पर काली स्याही से अंकित कर दी गई और बन गई इंसान की मेहनत का अफसाना। एक व्यक्ति कितने मेहनत, प्यार और कड़ी लगन से अपने भविष्य को अच्छा बनाने की कोशिश में डिग्रियों पर डिग्रियां लेता रहता ह