Posts

Showing posts from May, 2009

क्या हैं हम

अक्सर जब हम अकेले होते हैं ख़ुद से बातें करते हैं, ख़ुद में खोकर यही सोचते हैं क्या हैं हम और क्यूँ हैं क्या है हमारी पहचान इस जिंदगी में लोगों से मिलते हैं, कुछ अच्छाइयां तो कुछ बुराइयां बटोरते है तब जाकर हम जिंदगी से मिलते हैं जिंदगी एक पहेली है, जिसे उलझते-सुलझते हम जी जाते हैं सुलझ गई तो पहचान बनते हैं, वरना इसमे उलझ कर हम ख़ुद सवाल बन जाते हैं जिंदगी के इस दोराहे का जहाँ अंत है वही हमारा आखिरी पडाव है जो जान गए उसे माया से विरत होना पड़ा वरना इसमे ही खोकर ही जीना पड़ा

दो पल की मेहमाँ है खुशी

दुःखके घर में खुशी, दो पल की मेहमाँ बनकर आई सब ने लुत्फ़ उठाया, खेले खाए और मज़ा लिया जब उससे बिछड़ने की ऋतु आई तो फूट-फूट कर रोये सब दो पल की खुशियाँ देकर चली गई खुशी फिर आने का वायदा कर मुस्कुराते हुए आगे बढ़ गयी अब फिर से छा गई उदासी दुःख के घर में , बार-बार याद कर उसके आने का इंतज़ार करते हैं सब इसी इंतज़ार में लम्हा-लम्हा दिन गुजरते हैं सब कब वो आए,हमारे होठों पर खुशी के फूल खिलाये ये तो प्रकृति का रिवाज़ है, ये मेहमाँ तो बस दो पल का आगाज़ है जिसे आना है और चले जाना है थोड़े समय के लिए खुशी के फूल खिलाना है रोते हुए को हँसाना है और फिर धुंधलके में लौट जाना है
हमारी हिन्दी मेरे ख्वाबों की तस्वीर हो तुम मेरी रातों की नींद हो तुम तुम्हारी ही गोद में पलकर मै बड़ी हुई तुम मेरी हो और मै तुम्हारी ही रही तुम्हारी व्यथा से मै तडपती रही रात भर तुम्हारी आहों से सिसकती रही मेरे जज्बातों का एहसास हो तुम मेरी वीणा के झंकृत तार हो तुम विदेशों में तुम अपनाई गई फिर अपनों में क्यों तुम भुलाई गई क्या तुम्हारी व्यथा का किसी को एहसास नही क्यों आज तुम्हारी पहचान नही मेरे संघर्ष का पहला वार हो तुम फिर क्यों तुम ही संघर्ष करती रहीं जीवन भर पीड़ा सहती रहीं क्या हमारा तुम्हारे प्रति कोई दायित्व नहीं क्यूँ तुम्हे किसी ने पहचाना नहीं