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कुचक्र तोड़ रही हूँ हर रोज

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कुचक्र तोड़ रही हूँ हर रोज समाज तुझमे मर रही हूँ हर रोज. नारी हूँ , पथगामिनी हूँ जीवन तेरी ही अर्धांगिनी हूँ फिर भी कागज़ों में सिमट रही हूँ हर रोज. हर मुख पर सिसक रही हूँ हर रोज धारित्री हूँ , वरदायिनी हूँ माँ तेरी ममतामयी कहानी हूँ फिर भी हर आस में जी रही हूँ हर रोज प्रेम तेरे दामन में नफरत सह रही हूँ हर रोज                                                                 ...वी. माया
एक दिन मैं मेरे अपनों से ही परायी हो जाउंगी. परायी होकर फिर किसी से अपनाई जाउंगी. ये ज़िन्दगी का खेल तो यूँ ही चलता रहेगा. किसी का घर छोड़ तो किसी का जोड़ जाउंगी. ये दौर यूँ ही गुजरता चला जायेगा . और एक दिन इस ज़िन्दगी से भी नाता तोड़ जाउंगी. फिर समय का पहिया घूमेगा मैं वापस इस धरती पर कदम रखने आउंगी. जिन्दा दिलों से यही है विनय. मुझे आने देना ख़ुशी के साथ इस धरती पर. मैं एक नया जीवन चक्र आपके लिए निभाउंगी.                                                                             ...v.maya

मैं और मेरी खूबसूरती

ये उदासी, ये अंधेरा, ये कैद भरी जिंदगी लेकर कहां जाऊं। मनसा यही जहां जाऊं इसे छोड़ आऊं।। आज कुछ सोचते-सोचते कितनी उदास हो गई मैं, ये कैद भरी जिंदगी कब अपनी आखिरी सांस लेगी, इसी इं तजार में मेरी खूबसूरती दिन-ब-दिन ढलती जा रही है। ऐसा नहीं है कि मेरी खूबसूरती कम हो रही है बल्कि यचह कहा जाए कि मैं अपनी सुंदरता में दिन-प्रतिदिन कुछ ऐसा सौंदर्य बढ़ा रही हूं जो मेरे जीवन के लिए बहुत सुकून भरा होगा लेकिन किसी को इसी सुदरता की फिक्र नहीं। समाज सिर्फ शोहरत और दौलत की अंधी दौड़ में शामिल हो भागता जा रहा है... भागता जा रहा है और मेरा अस्तित्व खत्म करता जा रहा है। आश्चर्य मत कीजिए! इतनी देर से आप सभी जिन्हें जोड़कर समाज बनता है यही सोच रहे होंगे कि आखिर कौन है जो अपनी सुंदरता का इस कदर बयान कर रहा है, जो सबसे अधिक खूबसूरत है पर अंधरों में कैद है, हां मैं कोई और नहीं, बल्कि उस आम इंसान की मेहनता हूं जो एक कोरे कागज पर काली स्याही से अंकित कर दी गई और बन गई इंसान की मेहनत का अफसाना। एक व्यक्ति कितने मेहनत, प्यार और कड़ी लगन से अपने भविष्य को अच्छा बनाने की कोशिश में डिग्रियों पर डिग्रियां लेता रहता ह
साडी दुनिया दीयों के प्रकाश से जगमगा रहा लेकिन मई किस अँधेरे में हू गुम दीयों की जगमगाहट से झूम रहा मेरा मन कितने दिन ये ख़ुशी रहेगी कायम

अतीत

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अतीत की सोच में हम इस कदर घिरे हैं जहाँ आज के रिश्ते सिर्फ ओ सिर्फ बेमानी से लगते हैं कौन जाने कि वो हँसता- मुस्कुराता अतीत हमें फिर कब नसीब होगा इसी ख्वाब के लिए हम अपने अतीत में पल -पल जीते - मरते हैं अब चाह रहे फिर से ख़ुशहाली के वो पल आयें जहाँ आप और हम थे मुस्कुराए पर क्या कहें इस ज़माने कि जिसने हमारी इस मुस्कराहट को भी जिम्मेदारियों के बोझ तले बूढ़ा कर दिया फिर भी उम्मीदों के इस भंवर में जाग रही है जीने की एक नयी राह ...

राखी

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न कोई कड़ी हूँ, न कोई जकड़न, मैं तो बस वही एक प्यारा सा बंधन हूँ। मैं राखी हूँ, जिसे किसी ने भेजा है बड़े प्यार से, एक अटूट रिश्ते के एहसास से। जो सज जाऊँ कलाई पर तो एक रिश्ते का प्यार जताती हूँ, खुल भले ही जाऊं पर उस कलाई पर अपने निशाँ छोड़ जाती हूँ। हाँ मैं वही राखी हूँ, जो भाई की कलाई पर बंध बहन की रक्षार्थ होती हूँ, हाँ मैं उसी रिश्ते का परिपक्व आधार हूँ। न कोई कड़ी, न कोई जकड़न, मैं तो बस एक प्यारा सा बंधन हूँ।
किस जात - पांत की तू बात करता मानव किस धर्म का तूने पाठ पढ़ा इसी अगाधता के भंवर में तूने ये सारा जंजाल बुना अभी भी वक्त है संभल जा मत होने दे नरसंहार यहाँ कह रही ये फूट - फूट कर रोटी ये धरा .