क्या हैं हम

अक्सर जब हम अकेले होते हैं
ख़ुद से बातें करते हैं, ख़ुद में खोकर यही सोचते हैं
क्या हैं हम और क्यूँ हैं
क्या है हमारी पहचान इस जिंदगी में
लोगों से मिलते हैं, कुछ अच्छाइयां तो कुछ बुराइयां बटोरते है
तब जाकर हम जिंदगी से मिलते हैं
जिंदगी एक पहेली है, जिसे उलझते-सुलझते हम जी जाते हैं
सुलझ गई तो पहचान बनते हैं, वरना इसमे उलझ कर हम ख़ुद सवाल बन जाते हैं
जिंदगी के इस दोराहे का जहाँ अंत है वही हमारा आखिरी पडाव है
जो जान गए उसे माया से विरत होना पड़ा
वरना इसमे ही खोकर ही जीना पड़ा

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