हमारी हिन्दी
मेरे ख्वाबों की तस्वीर हो तुम
मेरी रातों की नींद हो तुम
तुम्हारी ही गोद में पलकर मै बड़ी हुई
तुम मेरी हो और मै तुम्हारी ही रही
तुम्हारी व्यथा से मै तडपती रही
रात भर तुम्हारी आहों से सिसकती रही
मेरे जज्बातों का एहसास हो तुम
मेरी वीणा के झंकृत तार हो तुम
विदेशों में तुम अपनाई गई
फिर अपनों में क्यों तुम भुलाई गई
क्या तुम्हारी व्यथा का किसी को एहसास नही
क्यों आज तुम्हारी पहचान नही
मेरे संघर्ष का पहला वार हो तुम
फिर क्यों तुम ही संघर्ष करती रहीं
जीवन भर पीड़ा सहती रहीं
क्या हमारा तुम्हारे प्रति कोई दायित्व नहीं
क्यूँ तुम्हे किसी ने पहचाना नहीं
badhai.bahut badyia.
ReplyDeleteblog ki duniya mai aapka swagat hai.achacha likha hai..jaari rakhna.
ReplyDeleteare wah miracle ap yhan par bhi....
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